एकांत की आवाज़
खुले किताब के पन्नों सा मैं,
न छिपा हुआ कोई राज़ हूं।
न द्वेष मुझे कुछ तुमसे है,
मैं खुद से ही नाराज़ हूं।
शांत अभी तो हूं मगर,
मैं उन्माद का आगाज़ हूं।
तुम मुझे मौन कहो पर,
मैं एकांत की आवाज़ हूं।
~हिमांशु शेखर
खुले किताब के पन्नों सा मैं,
न छिपा हुआ कोई राज़ हूं।
न द्वेष मुझे कुछ तुमसे है,
मैं खुद से ही नाराज़ हूं।
शांत अभी तो हूं मगर,
मैं उन्माद का आगाज़ हूं।
तुम मुझे मौन कहो पर,
मैं एकांत की आवाज़ हूं।
~हिमांशु शेखर
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