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एकांत की आवाज़

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    खुले किताब के पन्नों सा मैं, न छिपा हुआ कोई राज़ हूं। न द्वेष मुझे कुछ तुमसे है, मैं खुद से ही नाराज़ हूं। शांत अभी तो हूं मगर, मैं उन्माद का आगाज़ हूं। तुम मुझे मौन कहो पर, मैं एकांत की आवाज़ हूं। ~हिमांशु शेखर

टुकड़े चाहत के (1)

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  याद मुझे  वो चांदनी रात और सांझ की तेज़ बरसात तुझसे मेरी पहली मुलाकात, तेरे नयनों से वो चोट अघात। घायल जो मेरा मन हुआ हृदय में तेरा आगमन हुआ बिजली कौंधी तब सहास, फिर अंधकार ने फैलाया पाश। लोगों ने तब कोहराम किया मैंने तेरी आंखों में आराम किया, उस क्षण मैंने सुकून जो पाया मानो ग्रीष्म में कोई शीतल छाया, प्रेम जो हृदय में कहीं दफ़न था तन मन में है आज भर आया। फिर वर्षा की वो पहली बुंदे मानो केवल तुझको ढूंढे, आसमां के वो शीतल मोती उन्माद में तेरे सर को चुमें। पाषाण शरीर पूरा मेरा, केवल दृष्टि तुझ पर फेरा, आंखों पर पट्टी बंधी फिर, जिस पर केवल चित्र है तेरा। न जाने कब था गर्जन ठहरा कब छटा अंधकार वो गहरा नील गगन को साथ लेकर, आया कब एक नया सवेरा।                                          ~ हिमांशु शेखर