निष्कंटक चल
अंधे, बहरे, दुनिया में सब, सभों का लेकिन, काम है कहना।
तेरी गति है तेरे हाथ, तू अपने पथ निष्कंटक चलना।
तुझे ये दुनिया समझे मौन, तू हृदय में शोर करते चलना।
पथ पर कांटे भरे हुए तो, पांव तले कुचलते चलना।
घाव चाहे कितने ही लगे फिर, तू न किसी से द्वेष रखना,
मंजिल को ठहराव जान तू, अपने पथ निष्कंटक चलना।
हिमांशु शेखर।।
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